तावड़ै री तीख
तपती बेकळू
तिरसा कंठ
सूखती जीभ
जठै ई
देह-नेह सूं
हर्यो-भर्यो
अंतस् मीठास
दिरावतौ सो
मतीरौ मरुथळ रौ
सगळा प्रासै।
स्रोत
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पोथी : जागती जोत
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सिरजक : शिवराज छंगाणी
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संपादक : डॉ. भगवतीलाल व्यास
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प्रकाशक : राजस्थान साहित्य एवं संस्कृति अकादमी, बीकानेर