मस्त मस्त बेवै

नदी

मचळै तो बाढ़

जाय

पिण

तिरस मिटाय जीवण दे

पाणी।

जोर सूं चालै

आंधियां बण जाय

मंधरी-मंधरी चाल

पिण

जिंदगी री सांसां देवै

हवा।

भबके ज्वालामुखी

बुझिया राख बणै

आकरी-मंधरी बळै

पिण

जिनगानी ने पात देवै

आग।

स्रोत
  • पोथी : बगत अर बायरौ (कविता संग्रै) ,
  • सिरजक : ज़ेबा रशीद ,
  • प्रकाशक : साहित्य सरिता, बीकानेर ,
  • संस्करण : संस्करण
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