पीड़ री भासा नैं

उल्थै री कोनी हुवै दरकार

आंख्यां रो गीलोपण

मतोमत्तै जोड़ देवै

नदियां नैं धोरां सूं

जकां रो पाणी

कदी खूटै कोनी।

दुख रै दरिया माथै

पुळ री जरूरत कोनी हुवै

बायरै में तिर’र

कणां मांकर

पारोपार निकळ जावै

अंतस सूं निकळ्योड़ी आह!

अेक रेलगाड़ी

फगत सवारियां कोनी ढोवै

ऊंच्यां फिरै

पीड़ री गंठड़्यां नैं

पूगावै

एक सूं बीजी ठौड़

ऐड़ी गाड़ी नैं

कैंसर एक्सप्रेस

कोई मजाक में कोनी कैवै

आंसुवां रै बाळै में बैय जावै

गाडी रो सरकारू नम्बर अर नांव।

सांसा रै सीर रो

तळपट कोनी मिलाइजै

कै म्हैं कित्तो करियो

कै बण कित्तो करियो

ऐड़ा सगपण

अंतस में रमै

बिना बखाण

का अमिट रैवै

ओळूं रै आंगणै।

स्रोत
  • पोथी : चीकणा दिन ,
  • सिरजक : डॉ.मदन गोपाल लढ़ा ,
  • प्रकाशक : विकास प्रकाशन, बीकानेर ,
  • संस्करण : प्रथम संस्करण
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