जे थूं सुख चावै

पैली म्हारो दुख बांट,

लगावै म्हारै कांम रो हिसाब-किताब

तो पैलां

थारो हिसाब-किताब म्हारी हथेळी धर,

म्हैं प्रीत री जेवड़ी

तौ थूं किनको बण जाय

अकड़ै तो खींचूं

लुळै तो ढील,

थीं जितरो म्हारो

उतरी म्हैं थारी,

सूंवै गेलै चालै तो ठीक

नीं तो ठोसै बैठ

गुड़-गुड़ जाय...।

स्रोत
  • पोथी : इक्कीसवीं सदी री राजस्थानी कविता ,
  • सिरजक : कृष्णा जाखड़ ,
  • संपादक : मंगत बादल ,
  • प्रकाशक : साहित्य अकादेमी ,
  • संस्करण : प्रथम संस्करण
जुड़्योड़ा विसै