अेक दिन री बात

ऊजळी ही रात

आभै री चन्दरकाळा

आपै

नाचै ही, गावै ही

म्हारली घर-धिराणी

मनै समझावै ही—

मत गीत’र कवितावाँ जोड़्या करो भई!

धँधा तो दुनिया में दूजा है कयी!

बाताँ में बात निसरगी

बाताँ में रात निसरगी!

सुरजी निसर्‌यायो

तावड़ियो उसर्‌यायो

भुंई सूं सुरजी रो कितरो आँतरो!

पण तेज-तप घणो साँतरो!

नेड़ै-निड़ाँस अँधारो

कठीनै-ई नी रैयो

जणा

मैं घर री लिछमी नै कैयो—

मत रामायण-गीत-भागौत रा पाठ

उचार्‌या कर!

‌अै कवियाँ रा कँठाँ सूं ऊचर्‌या गीत अमर!

बाताँ में बात निसरगी

बाताँ में जात निसरगी!

स्रोत
  • पोथी : कूख-पड़यै री पीड़ ,
  • सिरजक : किशोर कल्पनाकान्त ,
  • प्रकाशक : कल्पना लोक प्रकाशन
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