अबै

घर, घर कठै रैयो,

अेक सराय बणग्यो

जठै मिनख

दिन उग्यां निसरै

अर

तारा छियां ढूकै

जठै

ना तो मायतां खातर

टेम हुवै

अर ना ही

टाबरां खातर।

स्रोत
  • पोथी : इक्कीसवीं सदी री राजस्थानी कविता ,
  • सिरजक : संजू श्रीमाली ,
  • संपादक : मंगत बादल ,
  • प्रकाशक : साहित्य अकादेमी ,
  • संस्करण : प्रथम संस्करण
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