सैर रै पसवाड़ै

सूधै जीवण रौ परियांण

सिरकतौ सींवां सोधै—

अेक सैंतीस घरां रौ गांव

चौगिड़दै सूनियाड़ पड़ी है

बधती आबादी री अबखाई

अठै सूती खुरड़ाटा भरै,

धिराणी सगळै दिन बैठी—

थूक बिलोवै—

कंवळै पर उडीकता टाबर

गिरण करै—

मां भूख मरां!

धिराणी भूजै

अर दुरकार करै—

अबोला मरौ अघोर्‌यां!

(क्यूं लाज गमावौ?)

रम्मौ नीं बारै जाय'र,

दिनूगै पैली काम करां

या भूख मरां?

काम!

सगळै दिन काम-ई-काम

काम रौ कांई नांव

कब्बर खोदणौ भी काम है

अर बूरणौ भी काम—

कैया करै

सैंतीस घरां रौ गांव!

चवदै घर आपसरी में बंतळ करै

चौवटै में ऊभा

कंवळी रेत में कूंडाळ्या काढै

लारलां री कटवीं करै

आपसरी री जड़ां खोदै!

नव नगटां रा न्हौरा काढै—

खेतां में सिट्टी झड़ै,

पण अठै तो

आं गैलसफ्फां सूं गरज पड़ै,

अर वै आंख्यां नै मटकावै

जीभ नै डौढी चाढ

टिचकार्‌यां करै

नाड़ हलावै—

नव भांत रा नखरा करै!

सात

सैरां में पढतां छोरां रा

सिरकारू व्हेण रा सपना देखै

तकदीर संवारै

मोद करै

छोरै री फीस पूरी करण खातर

पेट आडौ पाटौ बांधे—

दिन नै लूखी सूं काम धिकावै

रात रा खीचड़ौ रांधै

चार चुतराई सूं

चाकरी करै

आथमतै दिन में

आथू रै घरां हाजरी भरै—

नाई वार-तिंवार

टींगरां रै कोरणी काढै

सुथार

तूटी क्याड़ी सूं बाथेड़ा करै!

दो मांगै

अर मसखर्‌यां करै—

डाकोत दिनूगै-दिनूगै

तिथ-वार बतावै

स्यांमीजी झोळी लीयां

अलख जगावै—

रात नै

संख अर झालर घूंकावै!

अर आखिरी

आथूंणै पासै

तूट्यौ-फूट्यौ डूंमड़ां रौ घर

गांव में परदेसां री खबरां लावै—

भांत-भांत रा दूहा गावै

ढोल बजावै,

अर आयी-होळी डूंम

सैंतीस घरां रै गांव नै

फोर-फोर नै

गैर रमावै

घरां नै गांव बणावै!

स्रोत
  • पोथी : अंधार-पख ,
  • सिरजक : नन्द भारद्वाज ,
  • प्रकाशक : जनभासा प्रकासण, जोधपुर ,
  • संस्करण : प्रथम संस्करण
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