खून सींचियां फूटी कूंपळ

परसेवौ पी बूंटौ फळियौ

म्हैं जाण्यो म्हारी मैणत

फूलां-फळां मजूरी मिळसी!

कद जांणी—

तन विसरामां थपकी देतां

मन नींदड़ली पोथी पढ़तां

रात आंगणै

अंधारै री लगा निसरणी

चोर चांदणौ यूं कर दैला!

निकळूंला जद सोधण

म्हारा रगत-पुसप नै

फळ-रस बदळ्या

परसेवा नै

तद पाँखड़ियां

बिखर्‌योड़ी मिळसी

रगत पुसप री

सूखोड़ा छूंतरका मिळसी

रस रै फळ रा।

कद जांणी ही—

रगत-पुसप रौ रगत

जमानौ यूं चूसैला,

परसेवौ म्हारौ यूं चोरी व्है जासी।

स्रोत
  • पोथी : जुड़ाव ,
  • सिरजक : पारस अरोड़ा ,
  • प्रकाशक : धरती प्रकाशन
जुड़्योड़ा विसै