जगावै नीं
पकावै अग्नि-
आंवै में घट,
धरती बीज,
देही आत्मा।
अग्नि रचै-
जळ-थळ-नभ-वायु
घट में,
बीज में,
आत्मा में,
जोंवती थकी मारग
आपरै चरुड़ हुवणै रो।