जगावै नीं

पकावै अग्नि-

आंवै में घट,

धरती बीज,

देही आत्मा।

अग्नि रचै-

जळ-थळ-नभ-वायु

घट में,

बीज में,

आत्मा में,

जोंवती थकी मारग

आपरै चरुड़ हुवणै रो।

स्रोत
  • पोथी : उतरयो है आभो ,
  • सिरजक : मालचंद तिवाड़ी ,
  • प्रकाशक : कल्पना प्रकाशन बीकानेर
जुड़्योड़ा विसै