धरती।

थारी हथेळी दे

म्हारा हाथ में

म्है कोर दूं

इणमें मेंहदी रा

पांन-फूल

ला, आकास।

थारौ दुसालो

दे म्हनै

म्हैं इण में टांक दूं

दो-चार

और सितारा।

ला, गंगा।

थारी धार

सूप दे म्हनै

म्हैं पी जाऊं

इणरौ सगळौ

जेहर

एक दांण

फेर बण जाऊं

नीलकठ

थनै कर दूं

निरमळ।

स्रोत
  • पोथी : राजस्थानी साहित्य रा आगीवाण: भगवती लाल व्यास ,
  • सिरजक : भगवती लाल व्यास ,
  • संपादक : कुंदन माली ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति अकादमी ,
  • संस्करण : Prtham
जुड़्योड़ा विसै