आग फकत वा इज तौ नीं व्है

जिकी निजर आया करै

झळझळाट करती अगन

दीखै कोनी

पण रेत माथै बिछ जाया करै

पग घरां तौ सिक जाया करै।

आग रै उपयोग सूं पैली

उणरी ओळख जरूरी

काम काढ़ण सारू वा

पूरी है के अधूरी

जांणणौ जरूरी।

बगत पड़ियां आग

उपजावणी पड़ै

नीं व्है तौ अठी-उठी सूं लावणी पड़ै

ठंड रै भाखर हेठै

दब’र मरण सूं पेली

आग उपजाय

ठंड नै पिघळावणी पड़ै।

जठै

निजर आवै आंख में ललाई

नस-नस चैरै माथै तणियोड़ी

भीच्योड़ी मूठियां

फणाफणावता फूणिया

अर सांस-गती बधियोड़ी

समझलौ, उण जगै आग सिळगगी है।

कैवै

के राग सूं आग उपजती ही

सबदां सूं परगटती

अगनी नै देखी हां

झेली हां,

बरसां यू पोख्योड़ी अगनी नै

दबियोड़ी अगनी

काढणी थनै है

सोचलै के आग नै पिछाणणी थनै है!

कित्ती अजीब बात है

लोग

हथेळी माथै हीरै ज्यूं आग धर

उणरौ सोदौ कर लिया करै

आग नै

लाग ज्यूं काम लैय

आपरौ बगत काटण सारू

पीढ़ियां री गरमी नै

गिरवी धर दिया करै।

पचतां-खपतां ईं

नीं लाधै थांनै जे

कठई कोई चिणग दबियोड़ी

कीकर वा पैदा व्है?

सोच-समझ वा समझ

समझावणी थनै है।

पण सैंगा पैली तूं

अगनी सूं ओळखांण कर लीजै।

स्रोत
  • पोथी : जुड़ाव ,
  • सिरजक : पारस अरोड़ा ,
  • प्रकाशक : धरती प्रकाशन ,
  • संस्करण : 1
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