आंगणै में निसंक पांखां परोटती,

गुड़मुड़ी होवती,

म्हारी गोद में लुळती

भोळी चिड़कली।

आपा-मम्मा गावती, फुदकती,

खेरा चुगती,

परींडे कनै ऊभ’र

पींऊं-पींऊं करती

भोळी चिड़कली

म्हारी कलम खोसती,

कागज फाड़ती,

स्याई ढोळती,

म्हारी भोळी चिड़कली

म्हारी चिड़ी,

म्हैं सुण रेयौ हूं

पाड़ौस सूं निसरता गीत—

''ढोलियो तौ म्है ढाळ आया

पोढण वाळी नै ले जासां

डरपौ मती ए...''

अर आवाज भी के—

''कोयल बाई सिध चाली...''

चाणचक मन तिड़कण लागौ

क्यूं, पण क्यूं?

कद जनम-बसेरौ करै

चिड़कल्यां बाबल आंगणै

जाणौ व्है वांनै

दूजै डेरै-पड़ाव

पण, अै गीत

तीखा नखां सूं फाड़ै मन

म्है छटपटीजूं,

कीं नीं कर सकूं

म्हारी भोळी

चिड़कली...

स्रोत
  • पोथी : अंवेर ,
  • सिरजक : चंद्रशेखर अरोड़ा ,
  • संपादक : पारस अरोड़ा ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति अकादमी, बीकानेर ,
  • संस्करण : पहला संस्करण
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