बंजर आंख्यां उखड़ी सांसा
भींतां पर फेरै हाथ बै
बिकण लागै जद घर आपरौ
भींतां सूं करै बात बै
बीतै ज्यूं रात कहर री
थमतौ जावै काळजौ,
अेक दूजै नैं देवै दिलासा
लुक-लुक पूंछै आंख बै
आधी रातां उठ बैठै बै
घर नैं देखै घणै गौर सूं,
आंगणै नैं छूवै घड़ी-घड़ी
कर मांचै सूं नीचै लात बै
गोडां नैं जद पकड़ उठै बै
भींत बणै है आसरो,
अेक हाथ सूं भींत पकड़ता
चालै झुकी कमर पर रख हाथ बै
यादां में खो जावै दोन्यूं
जोड़्यो घर कांई सपना देख्या
औलाद साम्हीं बस नीं चालै
सेवै ऊंची-नीची बात बै।