गांवा का अब जाग्या जी करसाण।

पूरो पूरी तोलो पटेलां थाखड़ी में राखो मत काण॥

बरसां सूं थें करता आया, थांका मन को जाणियो।

आंख मीच अंगूठी लगातो ज्यां भई कहतो बाणियो॥

सोच समझ अब पढ़के दस्तखत करबो ग्यारे सब जाण॥

गावां का.....॥

थोड़ी बाल लागतां चेती दबी दबी धूणियां की आग।

गांव गरियाले अब सब चेतिया, बैठ्या नहीं भरोसे भाग।

खेत खलाणां पणघट पालां चेतिया गांया का गुठाण॥

गांवां का ...॥

स्रोत
  • पोथी : कळपती मानवता मूळकतो मनख ,
  • सिरजक : रामदयाल मेहरा ,
  • प्रकाशक : विवेक पब्लिशिंग हाऊस, जयपुर
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