आज धरा फिर हंसबा लागी,
पांणी पी'र निखरबा लागी।
ज्यूँ मेवड़लो बरस्यो ऊपर,
छाती सीळी पड़बा लागी।।
करसां कै मन साता आगी,
फेर बांवणी हो बा लागी।
आषाढ़ी बरखा स्यूं जां'ण,
ताती तूळ गुजरबा लागी।।
हळ की नोंक चली खेतां में,
खींच लकीरां जद रेतां में।
मुरधर की माटी कै खातर,
सौंणा आखर लिखबा लागी।।
नाळ, खाळ सगळा भर जासी,
बीज बाजरी को उग आसी।
हरियाळी मांवस कै तांई,
बंजर भूम मूळकबा लागी।।
आज धरा फिर हंसबा लागी,
सागर में जळ भरबा लागी।
बौछारां की स्याही पीकर,
कलम कव्यां की झरबा लागी।।