है भारत महाराणी,

धोर्‌यां-धरती धरियाणी,

पावन गंगा ज्यूं पाणी,

रीद्धि-सीद्धि सा भरिया पांव री।

धन-धन करसाणी म्हारा गांव री॥

मानै मोटां रो कहणो,

लाज घूंघट रो गहणो,

समता में सार घणेरो,

हिल मिल हगळां सूं रहणो,

पालणियै पूत सिखावै,

आंगणियै मंगळ गावै,

झोळ्यां झुलावै टाबर-टाबरी।

धन-धन करसाणी म्हारा गांव री॥

मुखड़ो है चांद सरीखो,

जीं पै सूरज सो टीको,

आंख्यां में प्रेम उजाळो,

दमकै मोती रखड़ी रो,

नाकां नथड़ी भळकावै,

खण-खण चूड़्यां खणकावै,

मुळकै मीठी-सी भोळा भावरी।

धन-धन करसाणी म्हारा गांव री॥

पैलां घर री रखवाळी,

निरखै खेतां री पाळी,

बाजूबन्द लूमक झूमा,

पायळ, कड़ियां, खूंगाळी,

देवै हाथां रो झालो,

रूपां सूं रूप निराळो,

गावै कोयलड़ी आम्बां डाळ री।

धन-धन करसाणी म्हारा गांव री॥

है गायतरी गीता,

है सावतरी सीता,

है ममता री मूरत,

है दुस्मण भय भीता,

जामण जगती जगदम्बा,

सक्ति महा काळी अम्बा,

दुरगा नरसिंगी माता आवरी।

धन-धन करसाणी म्हारा गांव री॥

स्रोत
  • पोथी : आखर मंडिया मांडणा ,
  • सिरजक : फतहलाल गुर्जर ‘अनोखा’ ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी भासा, साहित्य अर संस्कृति अकादमी ,
  • संस्करण : प्रथम संस्करण
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