काळ रै इण तिरकाळ तावड़ै

तड़ाछां बावता बाछड़ा नै जोय

गाय री आंख समचै

रोई उणरी पड़दादी

पितरां नै दीसै धकलौ दरसाव

वै बादळां रा खोज काढ लेवै

अर बीजां रै उगतां पांण

वांरी गरमास समचै

पनूर सूं पूछै समियौ काटण री जुगत

वै सगळां सूं पूछ, सै कीं जांण लेवै

वै जांणै गोदामां मांयली

बोरियां री गिणती

वै जांणै

राज री मंसा मांय पड़्योड़ी गांठ

वै तौ ‘वलर्डबेंक’ री फांस ओळखै

पण बजार बाजती ‘वासिंगमसीन’ मांय

गाभा ज्यूं फंफेड़ीजतौ

म्हैं आपरै बायरै

हा-धम्मण व्है जावूं

नीं म्हैं कीं ओळखूं

नीं रोवूं

अर नीं कीं जांणूं

क्यूं के पितर इण बाबत म्हांनै कीं नीं बतावै

वै बजार सूं डरता म्हारै नेहड़ा नीं आवै!

स्रोत
  • पोथी : हिरणा! मूंन साध वन चरणा ,
  • सिरजक : चंद्रप्रकास देवल ,
  • प्रकाशक : कवि प्रकासण, बीकानेर
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