झर-झर झडै
रंग पत्तां सूं
झर-झर दीठ भरै।
पवन हलावै
परस
अचपळी
छिन-छिन छेड़ करै।
सुई सांझ
संध्या बंदन नै
रिख-सा रूख
अटल
एक टांग ऊभा है
साध्यां,
सांसां स्यान्त, सरल।
पूरब खोलै केस आपरा
पिछछम मांग भरै |
झर-झर झरै
रंग पत्ता सूं