अचाणचक

पोली व्हेगी

पगां हेठली जमीं

पग गोडां लग

जमीं में धंसग्या

आखती-पाखती ऊभा

लोगां नै पुकार्‌या ,

अचरज के वै सगळा

माटी री मूरतां में बदळग्या

माटी में धंसग्या

स्यात्

कोई रौ स्राप फळ्यौ वांनै

लाखां रा लोग

कोडियां रा व्हेगा।

म्हैं धरती रै कांधै हाथ धर

आयगौ बारै

अबै वै

गळै तांई धंस्योड़ा लोग

बुला रह्या है म्हनै।

म्हारा दोय हाथां में सूं

अेक म्हारौ है

दूजौ सूंपूं हूं वांनै

जाणतां थकां

के बारै आय’र वै

इज हाथ

काटण में लागैला

पण वांरी वै जाणै

म्हारी म्हैं जाणूं।

स्रोत
  • पोथी : जातरा अर पड़ाव ,
  • सिरजक : पारस अरोड़ा ,
  • संपादक : नंद भारद्वाज ,
  • प्रकाशक : साहित्य अकादेमी ,
  • संस्करण : प्रथम
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