मन थारो हो

उणसूं थूं सुपना देख्या

पण मन रा सुपना!

थारी आंख्यां आगै

अंधारो हुयग्यो

सुवारथ रो पड़दो पड़ग्यो...

थारो आपो

थारै माथै चढग्यो

इणी खातर

थूं रेत मांय रळग्यो!

स्रोत
  • पोथी : कवि रै हाथां चुनियोड़ी ,
  • सिरजक : मधु आचार्य 'आशावादी'
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