रठ में ठर

निसरै बा...

निवास की पोटळी सी

भखावटै सूं पैली।

दूवै सपना

हूंस री गायां

भल बणै बो आभो

आभै रा आंसू

सांवटै

आपरो आंचळ पसार परो

धरदै पीड़ कंवळै हाथां

सांवट परी

ऊंची लटाण धरती सी बा।

समद बण गुमीजै बो

बाद नदी री धार

मिठास सो इमरत झकोळ

पोखै समदर री हूंस

होयज्या

बीं मांय ही खारी

मिठास बांट...

भाखर री पुजारण बण,

बणाय दे भाखर नै भोमियो

लुगाई।

स्रोत
  • सिरजक : सत्यदीप 'अपनत्व' ,
  • प्रकाशक : कवि रै हाथां चुणियोड़ी
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