झांझरकै

जागर रौ हलकारौ व्है

नै खाट रा पागा

अपड़ियोड़ौ वौ डर

वौ भूंडौ भै

आपूं-आप कठै खो ज्यावै

जुद्ध रै पसवाड़ै

पोढ़ियौड़ी सुरसती

फेरूं सिरजण

रा आखर पोवण लागै

माळा में!

वै आखर तोप रे गोळां सूं

नीं मिट सकै

अर ईज वां ने काळ री

डाकण गिट सकै!

अेक अपरोगो डर

मांझळ रात

आडै री आगळ खोलै

नै मांयनै आय

मांचली तळै लुक ज्यावै

खूंटी टंगियौड़ी

म्हांरी कंवीज नै पतळूंण सूं

अेक पीळौ जरद नांव

बा'रै नीसरै

अर टावरां रै माथै

गूंद री ज्यूं

चिपक ज्यावै

दिन में बांच्योड़ौ

अेक समंचार

काळजै में चिराळी मारै

'चिली में गणराज रौ खातमौ!'

सेवट नींद री राख

सुपनां नै ढंक लेवै पण

पाब्लो नेरूदा री दियौड़ी रोसनी

सोन चिड़कळी री ज्यूं

घड़ी-घड़ी सूंण देती रेवै!

स्रोत
  • पोथी : पगफेरौ ,
  • सिरजक : मणि मधुकर ,
  • प्रकाशक : अकथ प्रकासण - जयपुर
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