बचपनै रो

कीं नीं बच्यो अब

घर-गाम अर

सै’र रो

भूगोल तकात बदळग्यो।

ओळयूं मांय

का सुपनां मांय

नान्हों-सो अेक पल

पळकै तो लागै जियां

अेक जूण मांय

दो जूण भोग ली हुवै।

स्रोत
  • पोथी : आसोज मांय मेह ,
  • सिरजक : निशान्त ,
  • प्रकाशक : बोदी प्रकाशन
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