आश्वासण

म्हांरी प्यारी जनता,
अेक बात सुणलो।
फगत अेक बार म्हनैं,
थे पाछो चुणलो।
पैली वाळी कमीयां नै,
अबकै पूरी करस्यूं।
खाली रियोड़ी जेबां,
उपरा थळी भरस्यूं।
थांनै तो मेळे मेळस्यूं,
चाहे जी स्यूं, मरस्यूं।

 

दायजो

‘नेतण बोली नेता सूं’—
‘अेकर ओ दहेज विरोधी भाषण
बन्द कर दो’
क्युं कै
आपां रै लाडेसर रो ब्याव।
म्हनै तो घणै दायजे रो चाव।
करस्यां दायजे वाळी शादी।
अेक बार उतार दो खादी।

 

अफसर फगत मोटो नांव

‘अफसर’ फगत मोटो है नांव।
घर में मांजणा पड़े है ठांव॥
दफ्तर में चाय, काफी, लेमण।
घर में चीपीयां, भुगली, बेलण॥
दफ्तर में रेऊं टेंटम टैन्ट।
घर में हुवै ढेबरी टैन्ट॥
अबै टींगर होग्या है मोटा।
पण माठा माँ सु ई खोटा॥
उणां नै चाहिजतो बंगलो।
म्हनै तो कर नाख्यो कंगाळो॥
सिंझ्या जावै सगळा खेलण।
पण म्हारे वास्तै तो,
बो ई चीपीयो अर बो ई बेलण॥

 

आत्म निर्भर

अेक गळी बैवतो मंगतो बोल्यो:
म्है तो म्हारो पेट मांग’र भरूँ।
थें भी कर दो मांगणो सरूँ।
आपां सगळा मांगण लाग जास्या
जणां आपणो देश,
आत्मनिर्भर हुय जासी।

 

फरक

अेक अस्सी बरसां री डोकरी बोली
कै म्हारे मांय अर,
‘श्री देवी’ में की फरक कोनी।
क्युं के वा भी लक्स सु नहावे,
अर म्है भी लक्स सु नहावूं।
वा भी चम्मेली चोपड़े
अर म्है भी चंमेली चोपडूं।
‘फरक है तो सिर्फ उमर रो’
कै बा आठ री ही,
जद म्है साठ री ही।
अर उण रै लटिया लटके,
अर म्हारै चामड़ी लटके।

स्रोत
  • पोथी : जागती जोत जून 1987 ,
  • सिरजक : शंकरसिंह राजपुरोहित ,
  • संपादक : चन्द्रदान चारण ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति अकादमी
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