म्हैं दादी नैं कैयो

‘दादी!

थे दस-बारै उपराथळी

टाबर जामण

हाळो देख्यो

घणो दोजक’।

दादी बोली

‘बेटा,

उपराथळी

पड़ता काळ

कदैई छपनियो काळ

कदैई अठावनियो

जांटी रा छोडा

धान मांय

पीस-पीस खाया

कठै हा घी-दूध

डांगर तो भूखा मरता मरग्या

जापै रै भानै सूं

थोड़ो आछो खाणनै मिलतो

दोजक।

स्रोत
  • पोथी : राजस्थली जुलाई-सितम्बर 2021 ,
  • सिरजक : बंशी यथा ,
  • संपादक : श्याम महर्षि ,
  • प्रकाशक : मरूभूमि सोध संस्थान
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