दिन तो दिन है

दिन उगतां ईं

आपरै गैलै चाल पड़े है।

कुण री

नीं सुणै-सुणावै

मनस्या ऊगै

मन छिप जावै

पूजै कूण

कूण बिसरावै

कुण दुख पावै

कुण सुख पावै

ईरै कदै नीं आवै

दिन तो भावै है

दिन उगतां

आपरै गैलै चाल पड़े है।

स्रोत
  • पोथी : जागती जोत काव्यांक, अंक - 4 जुलाई 1998 ,
  • सिरजक : मोहन आलोक ,
  • संपादक : भगवतीलाल व्यास ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति अकादमी
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