धरती घूमै—

दिन उगै।

धरती घूमै—

रात हुवै।

पण म्हानै समझ नीं है

म्हारै तो स्यात

मां चाकी फेरै जद दिन उगै

दादी दियो करै जद रात हुवै।

स्रोत
  • सिरजक : राजदीप सिंह इन्दा ,
  • प्रकाशक : कवि रै हाथां चुणियोड़ी
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