किणी धोळै-झक्क री

लीली करतूतां सूं

जलम्योड़ा टाबर

आपां सगळा री भांत

राखै रातो खून।

दिन धोळै

दिखायोड़ी हिकारत

आं मासूमां नैं बणावै

तेजाबी।

ठुकराईज्योड़ा

‘हरामी’ सुणतां

भण्यै बिनां

पढ़ ल्यै

दुनियां रा चाळा।

कठैई नीं मिलै हेत

पिछाण

बाप रो नांव

तो अै व्हीर हुज्यै

कोठां सूं

अर उगै नवी

धारावी।

पछै कींकर

कैय सकां

कई मजला बिल्डिंगा रै

विंडो ग्लास कनै

ऊभा होय

आंगळी सूं

सैन करता कै

बा देखो

धारावी

जठै पळै अपराध

रैवै स्हैर रो कोढ।

कांई ठाह

कुण है दोसी

आं धारावियां रो।

स्रोत
  • पोथी : रणखार ,
  • सिरजक : जितेन्द्र कुमार सोनी ,
  • प्रकाशक : बोधी प्रकाशन, जयपुर ,
  • संस्करण : प्रथम
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