धोरा मांय

डरूं-फरूं बोया

आस रा बीज

भाठा रोप

उगाया

रूंख

सोच्यो हो—

मिट जासी

सगळी ही अबखायां

पण

सीख नीं सक्यो

बगत रो

काण-कायदौ

पछै

किंया भागतो काळ।

स्रोत
  • सिरजक : राजेश कुमार व्यास ,
  • प्रकाशक : कवि रै हाथां चुणियोड़ी
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