एक दीवौ हूं
बळूं हूं!
नेह हिय रो नेह है
नैं वाट करुणा री करूं हूं!
एक दीवौ हूं
बळूं हूं!
दिवस भर बेखौफ लड़ता
सूरजी जद थाक जावै।
लाल चिट्ट हुयां परैवो
सांझ पल्ला सूं उड़ावै।
सस्त्र किरणां रा समेटै।
बाथ भर नैं हेत भेंटै।
उण अंधारै आथडूं म्हूं
बळी सूं निरबल लडूं हूं!
एक दीवौ हूं
बळूं हूं!
ओ अंधारो है बळी
इणरी भुजावाँ जोर वाळी।
डील है विकराळ इणरो
घुप्प पसरी रात काळी।
स्रिस्टी में सै नैं डरावै।
स्रिस्टी में सै नैं हरावै।
पण नहीं म्हूं हार मानूं
खीण लौ सूं प्रज्जळ हूं।
एक दीवौ हूं
बळूं हूं!
कठै औ अंधार सबळौ?
कठै म्हारी खीण काया?
पण किसा अंगार मन में
इण मथी माटी बणाया!
नैनको भंगुर घणों घट।
देह तो दुबळी, घणों वट।
आतमा रै इण अजर
आलोक सूं म्हूं ऊजळूं हूं!
एक दिवलौ हूं
बळूं हूं!
दु:ख कोनी है रती भर
नित्त म्हारो नेह बाळूं।
है हरख मन में घणैरो
म्हूं किरण-पथ नैं उजाळूं
है जगत रो इसौ ढ़ारौ।
नित्त कोनी औ अंधारो!
जोत दीपावै जगत
इण आस में फूलूं-फळूं हूं!
एक दीवौ हूं
बळूं हूं!