रात कीं नीं

बस नांव है

पसवाड़ो फेर’र

च्यानणै रै सुस्ताणै रो

अर दिन

दिन भी कीं नीं

बस खेल है

पसवाड़ो फेर’र

अंधारै रै आराम फरमाणै रो-

आं दोन्यां री चाकरी में

जे कोई

नीं झपकी है पलक

तो वा है

धरती...।

स्रोत
  • पोथी : थार सप्तक 7 ,
  • सिरजक : मनमीत सोनी ,
  • संपादक : ओम पुरोहित ‘कागद’
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