केसरिया बालम आवो नीं

पधारो म्हारै देस.....

मिसरी सूं मीठी है

थारै मोबाइल री कालरटून

थमो-थमो सुनयना !

मती उठावो म्हारो फोन

थारै सागै बंतळ सूं पैलां

म्है इण गीत नै सुणनो चावूं।

घर सूं चार सौ कोस आंतरै बैठ्यो म्हैं

इण गीत री मीठी धुन रै मारफत

घर रो गेड़ो लगावणो चावूं।

खंभात री खाड़ी खंनै सौराष्ट्र में

है म्हारो रैवास

कोई मजा रै भाळै कोनी!

जीविका री मजबूरी है

नींतर म्हनैं तो अजैं

रोजींनै धोरां रा सपनां आवै।

लारलै दिनां री बात है

अलंग शिपयार्ड सूं

साग-भाजी खरीदतां थकां

जोग सूं म्हनैं

एक बाड़मेरी मजूर मिलग्यो

सांचाणी

उणरै बांथ घाल’र

रोवण रो जी करियो।

म्हैं बाड़मेर कोनी देख्यो..!

कोनी बठै म्हारो कोई समंध-सगपण

पण कांई ठाह क्यूं

बो बाड़मेरी मजूर

आपरो-सो लाग्यो म्हनैं।

इण सूं बधती कांई हुसी

कै इण नागण जेड़ै

राजमारग आठ माथै

आर जे नम्बर वाळी

गाडी देख्यां

हियै री कळी-कळी खिल जावै।

थूं हांसैला

म्हारी बातां नै

गैलायां मान’र

पण कूड़ कोनी कैवूं

’देस’ नै जाणणै खातर

दिसावरी घणी जरूरी हुवै।

कोनी समझी गैली !

बिंयां किणी चीज नै आपां

गमायां पछै तो सावळ जाणां

गमायां पछै तो

उणरी करां चावना।

स्रोत
  • पोथी : म्हारै पांती री चिंतावां ,
  • सिरजक : डॉ. मदन गोपाल लढ़ा ,
  • प्रकाशक : मनुहार प्रकाशन ,
  • संस्करण : प्रथम संस्करण
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