तू लूट रै ! तू लूट

तू लूंठो है रे लूट

पण लूट सकै तो

लूंठोडा नै लूंठाई सू लूट

तू लूट

जका जिंदगी भार बण्या जीवै है

जका बापडा निबळा है लाचार

जका भाग फूट्या है जाबक यार

कीडा ज्यू किलबिलता नै मत मार

मत लिवाड रे विकरम सूरा हाथ

कळपतडा रो काळजियो मत चूंट

लूंठोडा नै लूंठाई सू लूट

तू लूट

जकै चुल्है चढै दिनूगै दाळ

जठै दोय रोटी रो नही जुगाड

भूख मरता टाबरिया बेहाल

बानै खावण नै मत मूंढो फाड

मत लिवाड रे विकरम सूरा हाथ

कळपतडा रो काळजियो मत चूंट

लूठोडा लूठाई सू लूट

तू लूट

जका जेठ तावडिय में तापै

बळबळती लूआ में सींचै पसेव

सीयाळै री ठारी में कांपै

खटै खेत में दिन भर आखी रात

फिरै उघाडा

फाटैसर भी पैरण नै नी पूर

मिलै लूखा रोट पेट भर धाप

जीभ लपरका लोहीड़ो मत चाट

लूखा लाणा हाडां मती लमूट

मत लिवाड रे विकरम सूरा हाथ

कळपतडा रो काळजियो मत चूंट

लूंठोडा नै लूंठाई लूट

तू लूट।

स्रोत
  • पोथी : राजस्थान के कवि ,
  • सिरजक : भीम पांडिया ,
  • संपादक : रावत सारस्वत ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी भाषा साहित्य संगम (अकादमी) बीकानेर ,
  • संस्करण : दूसरा संस्करण
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