टाबर डोलै उघाड़ा

पेट मांगै दाणां

लूआं रौ तपतौ तावड़ौ

जठै चालै तेज आंधियां

पुराणी छत सूं टपके पाणी

रसोई करती,

टाबर राखती नै

झूंपड़ा बणावती

बांट सुख-दुख बरोबर

धणी सूं

माथै तगारी,

हाथ में ले फावड़ौ

सुख-दुख री साथण

घर री धणियाणी

मजूरी नै चाली!

अेक-अेक भाटौ चुगती

जीवण री चुनौतियां सूं

संघर्ष री रोटी चबावै

लूण मिरच रै सागै

सांझ पड़िया

धंधा सूं आवै

सगळा नै प्रीत रा

मीठा बोल सुणावै

ममता सूं उणां-खूणां में

जीवण रो जोत जगावै

घर रै चौक री

तुलसी!

बळती खीरा ज्यूं

मानस रौ संसार रचावै

जीवण री जुगत जोड़ै

तकलीफं झेलण री

ताब राखै

खेतां में सड़कां कूटण री

अर माटी गारौ ढोवण में

बोझ ढोवै है धणियाणी

धणी रौ, टाबरां रौ

नै कच्चा आसरा रौ।

बांट सुख-दुख बरोबर

धणी सूं

माथै तगारी,

हाथ में ले फावड़ौ

सुख-दुख री साथण

घर री धणियाणी

मजूरी नै चाली!

स्रोत
  • पोथी : बगत अर बायरौ (कविता संग्रै) ,
  • सिरजक : ज़ेबा रशीद ,
  • प्रकाशक : साहित्य सरिता, बीकानेर ,
  • संस्करण : संस्करण
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