सगळां री पीड़ा स्वात-मेघ

सगळां रा आंसूं मोती है!

जो-जो पीड़ा नैं पाळै है

पीड़ा वां रै रस बरसावै।

जो-जो चूंटीजै फूळ डाळ सूं

वै माळा में सरसावै!

हरसावै वै, जो दु:ख देखै

बरसावै वो, जो तपै भांण

जो धुकै धूप, पसरै सुगंध

वा ही सांसां में बस जावै।

जो बळै दीप काळजो बाळ

वो उजवाळै जोती है।

सगळां री पीड़ा स्वात मेघ

सगळां रा आंसूं मोती है!

तन तोड़ व्है रह्यो है झरणो

जद इणरो मीठो पाणी है।

इणरी गति रै साथै गाती

कल-कल-कल मीठी वाणी है।

मिट नैं प्यास बुझावै है

लीली छम राखै हरियाळी

इणरी पूरी जिनगाणी

करुणा की एक कहाणी है।

इणरो उजळो इतिहास भलै

इणरै पग पड़ी पनोती है!

सगळां री पीड़ा स्वात-मेघ

सगळां रा आंसूं मोती है!

पाणी उकळै नैं बणै मेघ

गहड़म्बर अम्बर छा जावै।

बीजळ पळकै, भळकै धरती

नारी विजोगणी डरपावै।

रज नैं गाभण वा छांट करै

धरती रो जौबन उफणै है

अन्तस रो हेज अन्न बण नैं

करुणा ज्यूं मोती सरसावै।

वा करुणा सरसै-हरसै

बरसण तो फगत फिरोती है।

सगळां री पीड़ा स्वात मेघ

सगळां रा आंसूं मोती है!

स्रोत
  • पोथी : सगळां री पीड़ा-मेघ ,
  • सिरजक : नैनमल जैन ,
  • प्रकाशक : कला प्रकासण, जालोर ,
  • संस्करण : प्रथम संस्करण
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