1

अंधारी रात जद ढळसी
किरण री आस सा फळसी॥
पुसबिया रंग आभै में
धरा रौ नेह नित पळसी

2

मानखै नै ठेठ तांईं प्रीत सूं पाळौ
अंधारौ मेट्ट्यो, दैवौ उजाळौ।
जिनगाणी मोतियां सूं बौत मूंघी है
भरम री झाळ सूं इणनै मती गाळौ॥

3

पूरबली प्रीत री बात्यां अजै तांईं पळीजै है
चमकती चानण रात्यां अजै तांईं ढ़ळीजै है।
फूल रौ सिणगार, सुणणौ सोवणौ लागै भलै
पण फूल री मनसा अजै तांईं छळीजै है।
स्रोत
  • पोथी : मोती-मणिया ,
  • सिरजक : सिवराज छंगाणी ,
  • संपादक : कृष्ण बिहारी सहल ,
  • प्रकाशक : चिन्मय प्रकाशन
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