रात कीं नीं
बस नांव है
पसवाड़ो फेर’र
च्यानणै रै सुस्ताणै रो
अर दिन
दिन भी कीं नीं
बस खेल है
अंधारै रै आराम फरमाणै रो-
आं दोन्यां री चाकरी में
जे कोई
नीं झपकी है पलक
तो वा है
आ धरती...।