काचै पिंड बैठ

पाका सुपना

मत देख मनड़ा!

बगत री फटकार

गुड़कासी पिंड,

पिंड भेळा

गुड़कता सुपना

खिंडैला पिंड सूं पैली!

मोह री

काची मटकी

काचो पिंड

काचा सुपना

अेतबार किणरो

काचा मन

थूं कद सांचो!

पिंड पाळै

मनड़ा थंन्नै

खुद री रुखाळी

जद लदसी खुद

थूं कियां बचसी

पिंड सूं बारै

इणी सारु

जोगी जोग रच

थंन्नै मारै!

स्रोत
  • पोथी : भोत अंधारो है ,
  • सिरजक : ओम पुरोहित ‘कागद’ ,
  • प्रकाशक : बोधि प्रकाशन, जयपुर ,
  • संस्करण : प्रथम
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