(अेक)


चिड़कली
अबै चिंता करै
ओजूं आपरो–घर चिणै।

तिणकल्या ल्यायी है
उठा’र खेत सूं
आळणो बणासी
अबकै
रूंख री टोखी
पण
कुचमादी जात
भानो बणा सांगरी रो
रौडी करै–खेजड़ी बाई
अणबोल बायली बोल कांई?

(दोय)


चिड़कली
चं-चूं
चीं-चीं
रागळी निकाळै

छोटै-सै बचियै री
स्यात समझावै ही कीं
बतावै ही कोई बात
पण समझ नीं सकी
आरसीसी
लैंटर
बीम
काच रा जंगळा
पंखा, अे.सी.
सनमाइका में उळझ्योड़ी
अेक घणी स्याणी जात
अर
अणसुणी रैयगी
न्याव री आस में
बेबस-बापड़ी
चिड़कली री बात।

स्रोत
  • पोथी : ऊरमा रा अैनांण ,
  • सिरजक : अशोक परिहार ‘उदय’ ,
  • संपादक : हरीश बी. शर्मा ,
  • प्रकाशक : साहित्य अकादेमी, नई दिल्ली ,
  • संस्करण : प्रथम
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