कह्यो चिड़ी नै सुणले साथण

बोल कमेड़ी टमरक-टूं

सत रो सबद अेक हूं जाणूं

भीतर भंवरो गूंजै यूं

थारो-म्हारो अेक करम है

करम करतां काया गाळां

थारो म्हारो अेक धरम है

आप-आपरै बैठ्या आळां

जुगां-जुगां सूं पांख पंखेरू

आपां-झूमा अेकां डाळां

हूं म्हारा चहचइया पाळूं

पाळ थारळां नै भी तूं

बोल कमेड़ी टमरक-टूं

जीव-जमारो न्यारो-न्यारो

इण धरती पर प्राण फळाय

हाड-मांस रा सभी पूतळा

ममता अेक घिरोळो खाय

पण कुजीव मरजादा तोड़ै

ममता नै बदनाम कराय

परम शांति रै लगा लायणो

दुनिया में दुख-दरद घिराय

जात-पांत में जखमी हुयग्या

बो छोटो है मोटो हूं

बोल कमेड़ी टमरक-टूं

पोथा पढ़-पढ़ पच्या घणा पण

मूळ भाव देख्यो नहिं छाण

पीड़ पराई नै पंपोळै

बो ही मिनख मिनख तूं जांण

के राजा के रंक बावळी

उळझ्या अेक भंवर जंजाण

बाथां पड़ता फिरै काल रे

खा जासी सगळां नै काळ

पण कुजीव किरतघणी

जग में अमर खूंळो हूं

बोल कमेड़ी टमरक-टूं।

स्रोत
  • पोथी : हिवड़ै रो उजास ,
  • सिरजक : भीम पांडिया ,
  • संपादक : श्रीलाल नथमल जोशी ,
  • प्रकाशक : शिक्षा विभाग राजस्थान के लिए उषा पब्लिशिंग हाउस, जोधपुर ,
  • संस्करण : प्रथम
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