भींत अंधारै
हाथ नै नीं सूझै हाथ!
अबै इण भासा रौ कांई करूं?
के वा इण जुमला में
आंख रौ काम करती
हाथ बाजै अर लोगां नै ठाह ई नीं पाड़ै...
अरथ ई समझै-समझै
जित्तै बोल-बाल
अेक पळक रै समचै भासा
पाछी आपरै व्याकरण रै खोळियै चापळ जा...
जांणै कठैई कीं व्हियौ ई नीं व्है!
कदेई सळाक सूं खळकाय देवै
प्रीत आंधी व्है
अर धाछंट जुमला रौ अरथ बिखेरती, सूंप दै
इणी मिस प्रीत नै आंख्यां अर मूंन व्हे जावै...
अबै म्हैं भासा री इण मूंन रौ कांई करूं?
पण करूं कांई...
भासा रै बिना काम इज तौ नीं चालै!
थारी ओळूं में ई चाहीजै, वा।