बिछावणो धरती रो

ओढ़णो आभै रो

पीवणो आंसुआं रो

खावणो धक्कां रो

सुपनो रोटी रो

टोटो सुख रो

पहाड़ दुख रो

पगां मांय छाला

अर घाव आला

करम फूट्योड़ा

छप्पर टूट्योड़ा

सिरकारां री मार

बेबस लाचार

आं सगळां री भेळप

मजदूर हुवै...!

स्रोत
  • सिरजक : लालचन्द मानव ,
  • प्रकाशक : कवि रै हाथां चुणियोडी़
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