दुनिया मजबूर करैली
मन नै
छळणी-छळणी करैली तन नै
तो भी आगै बधो
मत रूको, मत झूको
सौगंध हर सांस री
चावै कोई लोभ दिरावै
चावै कोई कान भरावै
तो भी
कसमां बंध्यो राखजै मन नै
धीरज री डोर सूं
सौगंध हर सांस री
घर री ईंट-ईंट कैवै
आंपणो घर तो आंपणो घर है
सुख अेक मुठ्ठी घणो
नीति रो अेक चणो
इमरत है
अनीति रो खाण्ड-खोपरो जैर है
देर है, अंधेर कोयनी
दोगला रै सामै मत झूको
सौगंध हर सांस री
आंधी आवै
तूफान डरपावै
कोई कुरळावै
दरिन्दा
हाय-तौबा मचावै
तो भी
मन में जो नाप जोख करो, विचारो
उणनै करो
सत्त री साख भरो
असत री सामी मत झूको
सौगंध हर सांस री।