कवि तौ

कदास जलमै इण खातर

के जलमतां ईं उणरौ नांव

प्रतिरोधियां री ओळ में लिखीजजा

म्हारी भायली प्रजा!

थारी गत अजब

जिकौ आवै वौ राज करै

थारै माथै बैठ

जांणै वांरी राजगादी व्है थारौ माथौ

कदास

इण सारू ईज थूं नाड़ हिलाय करै विरोध

आव,

अपां हरेक ठौड़ विलोम बण नीं ऊभ

खाली लोकतंतरी नीं बण कदैई तौ बेसी बणां

खाली धरम-निरपेख नीं बण कदैई तौ बेसी बणां

खाली सांयत में नीं जीव कदैई तौ अवचळ सांयत में जीवां

खाली जुद्ध-विरोध में नीं ऊभ

कदैई तौ जुद्ध-विरोध में मरां

कदैई तौ आपरौ हाथ पसार

अन्यावं नै समाज रौ रिवाज बणण सूं रोकां

कदैई लोड़-बडाई री गैरबराबरी नै पूंछां समाज री पाटी सूं

जुगां जूंनी गुलामी री बांण छाड

कारा री भींत में सांतौ देय

मोखां सूं काढां

अेक-अेक कर सगळा जीवता जीवां नै

कदैई तौ

गुलामी रै हेवा अणसूझती आंख्यां नै

अंधारा रै रेजळै पड़ण सूं रोकां

कदैई तौ हाथ री चिमटी सूं तोड़ बगावां

आपरै डील रै चेंट्योड़ी झिळोकां नै

उडावां

आपरी हतआस रा घावां माथै भणण-भणण करती

असळाक री माखियां

म्हैं जांणूं के अपां पुहप कोनीं

इण सारू अपांरी देही कनै कर

नीसर जावैला आस री तितळ्यां

वांरौ लारौ कर

वांनै पकड़ण री बात फीटी करां

आस रौ कांई छै

कदैई तौ आय झपकैला अपांरै सुपना में

अपांनै सोय करणी चाहीजै

आपरै मांयलै अंधारै चमकता

मुगती रा आगियां री

जीवण सारू केई बातां जरूरी छै

कदैई-कदैई

जद म्हैं तळाव री तीर माथै ऊभौ व्हूं अेकलौ

आभै में उडतौ अेक पाखी

‘डाइ’ मार हेठै आवै

अर म्हारा माथा माथै बैठण री करै

म्हैं ऊपरै जोय ओळख लूं

उण धोळा सुंवाळा-साक पाखी नै

सुख छै

पण सुख तौ सगळा कडूंबावाळा अर गांववाळा बिचाळै

आवतौ ओपै

अठै अेकांयत में ऊभा अेकला जीव सारू

कांईं अरथ रौ

म्हैं उणनै आपरै माथा माथै नीं बैठण दूं

हां, सेंगां रै माथै आय उतरै तौ बात दूजी

सगळी गोपियां रौ सिरोळौ रूप लियां

म्हारी राधा!

थूं बहुवचन में छै

इण सारू जद म्हैं थनै प्रजा केय बतळावूं

तौ इण जंगळी-तंतर मांय सुण

हूंकारौ देज्यै

अपांरी धकली जातरा रै मारग मांय

अजतांईं केई खाळा छै वाहळा छै

डोढा-बांका भाखर छै

चवड़ी-चवड़ी नदियां

अर छोळां सागै गरजता समदर छै

अपसूंण व्है

पण करां कांईं

धकै बधण में ईज जीवण छै

हाल धुंवाड़ी लाय छै थारी ओसियाळगी

पण ठंडी फुवारां छै थारै सागै

म्हैं थूं ईज छूं सोच

थूं म्हारी भायली

आव सागै टुरता जुगधरम निभावण हालां

इण ओळावै

म्हैं ‘म्हां’ बणतौ बहुवचन बणूं।

स्रोत
  • पोथी : तीजौ अयन ,
  • सिरजक : चन्द्रप्रकाश देवल ,
  • प्रकाशक : सूर्य प्रकाशन मंदिर, बीकानेर ,
  • संस्करण : प्रथम
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