बाबा,
कितरा दिन काट दिया थे
आज री उड़ीक मांय
टाबरपणै लोर्याँ सुणावतां
परियां रै सुपनां रै ओळावै
देख्यो होसी म्हारो
टाबरपणो,
तर-तर आवती जवानी
कै पछै थांरो बुढापो
किण खटाव री थापी सूं
सुणावतो म्हानैं झिंडियै री कहाणी
कैड़ी ही बा उड़ीक आज री?
थांरी छाती माथै कूदतो
फूल-सो वो टाबर
अबै ई है थांरै हिवड़ै मांय
दब्यो-दापळ्यो
आज दिवलै री लौ-सी फड़फड़ावती
थांरी सांसा
किण नै ढूंढ रैई है बाबा?
कांईं परियां रै उण राजकुंवार
नै जिको घोड़ै चढ़नै आवैला
अर सातूं सुखां री
निछरावळ कर जावैला।