कैद-घर रा कमरा मांय

कितरो डरपावणो समै

सोचूं- थारे बारे में—

छ: दसक पार करण रै पछै भी

सागै समै बितावण रो सुख

कोनी मिल पायो हो,

कोरोना रै कारणै रीस

अर थारै सारू

करुणा रो अहसास

म्हैं हिवड़े में जगायो हो

म्हारी कामेतण।

कितरो अचरज, रुमानी

समै रो दौर

बारणै जावोगा तो

सुरक्षित कोनी रैय पावोगा,

घर रै माइनै रैवो

थोड़ी-उणां री सुणो

थोड़ी आपणी कैवो।

लगोटक बढ़तो संक्रमण

बारणै माइनै-सगली आड़ी

हिला’र राख दियो,

कुण है वै जिणां

बायरा नै जैरीलो कीधो,

ऑक्सीजन री कमी रो

बणावटी संकट पैदा कीधो

अर—

जीवण रक्षक दवाईयां की

सुरू कर दीधी काला बाजारी

सांसां रा सौदागरां नै

लागगी लूट री बीमारी

थां कैवता रैया—

रीस रो उफाण भी

धीरे-धीरे कम हुय जासी,

अर-थमेगा

कुजोग करणिया वाला पै

नुंवी रोसणी जीत जासी।

आओ—

मीठा अहसास नै पावां

हिवड़ा री धड़कनां रै बिच्चै

कोई साची अर आछी

योजना ही बणावां।

अठै— आपणो घर है

घर रै माइने सुरक्षित हां

कोनी किणी रो डर है।

स्रोत
  • पोथी : जागती जोत (अप्रैल-जुलाई 2021) ,
  • सिरजक : रमेश ‘मयंक’ ,
  • संपादक : शिवराज छंगाणी ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति अकादमी बीकानेर
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