या अनुभवां री वा लाठी है
सगळां रै काम री साथी है
गेला मांय बै कतरा कांटा
हर बगत या म्हांनै बचावै है
सिखलावै है, बतळावै है
और टेम-टेम समझावै है।
पर मिनख अस्या पत्थर जिस्या
जे चतुर कागला बै मन रा।
अणी रा अनुभवां नैं व्यर्थ बताबै
रोज ठोकरां खावै है
पछै पाछेड़ सूं पछतावै है
आंख्यां खुलवा पे आवै है
तो ई ये वटवृक्ष रै जस्या-तस्या
सब दुख अपमान औ रंज भूल
गेला बतळाता जावै है
अर प्रेम लुटाता जावै है।