अंगां रौ मेळौ भर्‌यां पैली आयगी

म्हैं भारमली इण भुवन में!

कूंकूं पगल्यां बसंत री अगवांणी

फूलां री जाजम बिछावण

चंवर ढोळण मनसिजा री पालकी रै!

म्हारै सांम्ही पसर्‌य है

भावी रौ काळ हीण अंतरिच्छ!

तिरता दीसै म्हनै प्रभंजण में

अणगिणत नीळज अंगनावां रा आकार

निरबंध, अणावरत

कांमासणा लीण,

ममता बिहूणा, अगरभा;

सांवळा री गाळ, रागां रांझ्योड़ा!

पण कुण समझतौ

नारी काया री कमेड़ी रौ नखराळौ मरम

मरदां रचियोड़ा जुग में!

कुण समझतौ संकेत

गढ़-कोटां-रावळां री

बीजळसर पौळां लारै जलमता उछाळा रौ

कुण जांणतौ

मिनखा जूंण री बेदी रै ओळूं-दोळं

गोतर फेरा खावता भोग नै

म्हैं देह धारण कोनी करती तौ!

संसार रा सगळा धन सूं इदको मोल है

थांरी देही रौ, लुगायां!

'थै' दुवार हौ सगळी देहां रौ

थांरी देही बिना कोनी आवै

कोई आतमा, ईं रळियामणा संसार में!

थे धारण करौ गरभ में बेटा

अर यूं बिना भेदभाव

धारण करौ गरभ में बेटियां!

थै गरभ पूरणी मां हौ अलेखां मावड़ियां री

थै जलम देवौ डीकरां नै

जिका जोड़ायत बणै जांमणियां रा।

थै दूजी कुदरत हौ विधाता री

पैली कुदरत री खांमियां पूरी करणवाळी

थांरी देही में बिलगै

छोटा अर मोटा-सगळा!

मां ज्यूं सुवाणौ जिकां नै छाती माथै

ढांकौ आंचळ सूं होठां में हांचळ देवती

वै जवान होयां उणी भांत मांगै बिसांई

वल्लभा री छाती माथै

आंचळ री छीयां!

न्यारा-न्यारा रूपां में जीवौ।

स्रोत
  • पोथी : अंवेर ,
  • सिरजक : सत्यप्रकाश जोशी ,
  • संपादक : पारस अरोड़ा ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति अकादमी, बीकानेर ,
  • संस्करण : पहला संस्करण
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