आजकाल मारे चारे बाजू

उगी आव्यं है धूतारं थूवेर

ज्यंतक मने याद है

मै रोप्य हतं

भाई चारो, सदाचार नै मनखपणां

छाटेलं गुलाब

पण

आज काल

अणा मोसम नै हूं थई ग्यू है

क्यं चालीर्यू है

हौर नू वावा जोड़ू

कारेक तपी जाये है

हेत्तू वातावरण

धर्मान्धता नी धधकती लाय ऊं

आकास मय गरजी वरजी नै

आवै है रातं सट्ट वादरं

वरसावें हैं लुई भेनू पाणी।

हर दाणं वजू

नदीये नै वेरं मय पूर आवे है

पण नै वईरयू है वण में निर्मल जल

बल्की वई रुयो है

हिंसा, हूग, ने पाशविकता नो

पमरतो थको गादो

जेनाऊ फेलाइ रई हैं -

महामारीये

बीमारिये

ईर्ष्या नी

अण विश्वास नी

द्वेष नी,

नै बणी जाये है पूरी जमीं

पीड़ ऊं उपज्या थका

अकरामण नो

दलदल

नै मुं

निरन्तर

वणा मय उतरतो जाइ रयो हूँ,

उण्डो उण्डो अजी उण्डो।

स्रोत
  • पोथी : वागड़ अंचल री ,
  • सिरजक : उपेन्द्र अणु ,
  • संपादक : ज्योतिपुंज ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति अकादमी ,
  • संस्करण : Prtham
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