(अेक)

बारखड़ी रै जाळै नै
फिरोळतां
तूट जावै
हाथां रौ करार।

आखी पिथमी रौ
पैंडौ करियां
रैय जावै
पगां रौ पाणी।

पण वे नी लाधै।

वे नी लाधै
किणी राजा रै दरबार
किणी बैपारी री हाट

बरसतै मेह
भींजण री जिद करतै
टाबर नै
बारै जावण दौ
उणसूं बंतळ करण
आवैला ढाई आखर


(दो)

अबूझ नै
अरथ देवै आखर
ओळखीजै काळीदास
पीड़
रड़कती रैवै
आखर रै काळजै।


(तीन)

आखर जागै
स्रस्टि रै जागण सूं पैली
देवै पै’रौ
जोवै बाट
मिनख रै जागण री।

मिनख
कदेई नीं जागै।
आखर
आंखियां मांय गाळ देवै
आपरी ऊमर।

(चार)

बगत
लियां फिरै
आकरां री झाल
सिन्दूर पियोड़ौ
जुग
नीं जांणै
वारौ सुवाद।

(पांच)

आखर सूरज है
नैड़ा मत जावौ
बळ जावौला।
आंतरौ राखौ
पछै भाखौ
उणरी किरपा सूं
फूटैला हरियल दोब
छींया में
रमता दीखैला ममोळिया।

(छव)

आखर
केई वार
चैंट जाया करै।

सांसां री पूंगी
बाजती रैवै वा पीड़
नाचतौ रैवै
काळ सरप
कल्प बिरछ री
खोगाळ में।

(सात)

मेह बरसै
तद बरसै आखर
कदेई देखजौ।

अचपळायां करतौ
पसर जावै आपरै आंगणै
भाटां नै सूंपै सांस
करदै जीवता।

पण
अबूझ अपां
करां रीस
कसां कमर
बुवार उणनै काढदां बारै
बण जावां भाटा।

आखर ढळ जावै नदियां
नदियां समदर
समदर आभौ
यूं पूरी होवै उणरी जातरा।

स्रोत
  • पोथी : जागती जोत ,
  • सिरजक : अर्जुनदेव चारण ,
  • संस्करण : अंक 6
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